बेजुबान

 

हे ईश्वर

बेज़ुबानों की चीखें सुनाई तो नहीं देतीं पर उनका शोर मेरी रातों की नींद उड़ा देता है. कल internet पर वायरल हुई एक मासूम से कुत्ते की सड़क पर घिसटते हुए तस्वीरें देख कर मन विचलित हो गया। निरीह श्वान जो आदिमानव के काल से अपनी वफादारी साबित करता आ रहा उसके साथ ऐसा व्यवहार करके हम साबित क्या करना चाहते हैं? शायद एक इंसान ही ऐसा किस्म का जानवर है जो हर जानवर के नाम से जाना जा सकता है। अगर यही बात है तो उसेन बोल्ट की तरह चीते जैसे फुर्ती, या अभिनव बिंद्रा की तरह बाज़ की नज़र से क्यों नही?

इन लोगों के द्वारा की गई क्रूरता की उपमा किसी भी जानवर से दी जाना मुश्किल है। वो भी जब शिकार करते हैं तो ज़रूरत से न कि शौक..और इस तरह भगा भगा कर तो वो भी नहीं मारते। कुछ समय पहले केरल और चेन्नई में श्वानों को बेदर्दी से मार मार कर सड़कों पर बिछा दिया गया था। Tiktok ने भी इस मामले में कुछ कम आतंक नहीं मचाया। अपने शौक, मज़े या मनोरंजन के लिए किसी की जान से खेलना कहां तक उचित है?

मेरे चीकू और winky को खरोंच भी आ जाए तो मेरा दिल  बैठ जाता है। ये कौन से लोग हैं जिनका दिल किसी जीव को तड़पते देख कर भी पसीजता नहीं। हम किसी से बुरी तरह बात भी कर लें तो हमें पाप का बोझ सताने लगता है। ये किस किस्म के इंसान हैं जो पाप ही कमाए जा रहे हैं...और डरते भी नहीं!

कैसे किसी को जानबूझ कर कष्ट देकर ये लोग जिए जा रहे हैं? पता नहीं..इस सब की अंतिम परिणीति क्या होगी? क्या किसी दिन हम किसी इंसान को भी इसी तरह बेबस सड़क पर गुहार लगाते, घिसटते देखेंगे? Mob lynching जैसी घटनाओं में भी कहीं न कहीं यही क्रूरता निहित है..जो हमसे अलग है वो हमें इतना अप्रिय है कि हम उसके जीवन के दुश्मन बन गए?

मुझे बचपन से ही जानवरों से बहुतप्रेम रहा है। इनको कष्ट में मैं नहीं देख सकती। काश हम फिर एक ऐसी दुनिया में वापस आएं जहां हमें प्राणिमात्र से प्रेम था।


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