अग्निपरीक्षा

 

                               अग्निपरीक्षा

'मैं कुछ नहीं जानता! तुमने वादा किया था आज मेरे एकाउंट में पैसे आ जाएंगे। वैसे तो प्यार के बड़े दावे किया करती हो, 5 लाख में ही सुर बदल गए।' शिव ने इतना कह कर सुरंजना का फोन काट दिया। सुरंजना एक बड़ी कंपनी में hr थी। अच्छी तनख्वाह, रहने को घर, हर एक सुख सुविधा। बाहर से देखने पर उसकी जिंदगी बड़ी खूबसूरत लगती थी। पर असलियत में खुशी उससे कोसों दूर थी। सुरंजना का प्रेमी शिव एक छोटा सा व्यवसाय चलाता था। गाहे बगाहे उसे पैसों की ज़रूरत पड़ती रहती थी। पर इस बार उसकी जरूरत बड़ी थी। सुरंजना यूं तो अकेली ही थी पर आज के महंगाई के ज़माने में उसकी तनख्वाह नाकाफी महसूस होती थी। जैसा आजकल का चलन है सुरंजना के पास भी लोन थे जो हर माह उसकी सैलरी का लगभग आधा हिस्सा बड़ी बेरहमी से हड़प जाते थे। उस पर भी शिव के चेहरे की  एक मुस्कान के लिए वो कुछ भी कर सकती थी। न जाने क्यों ये कुछ भी हमेशा पैसे की मांग से जुड़ा होता था। शिव सुरंजना के लिए छोटे बड़े कई आयोजन किया करता था। उसके प्रबंध कौशल, उसकी कार्यप्रणाली और उसका अपने काम को लेके हमेशा गंभीर रहना सुरंजना को उसकी तरफ आकर्षित करता था। पर काम पूरा होते ही पैसे की मांग कर वो सुरंजना पर काफी दबाव डालता था। अक्सर उसका रिश्ता उसके कार्यालय के ढुलमुल रवैये और विभागों की अंतहीन कागज़ी कार्यवाही की ज़द में आकर तनावग्रस्त ही रहता था। शिव तय समय पर पैसे न मिलने से सुरंजना से बहुत बुरी तरह पेश आता। कभी गालियां देता, कभी बुरा भला कहता, कभी तरह तरह के इल्ज़ाम लगाता, कभी उसके अनुसूचित जाति के होने पर सवाल उठाता, कभी दूसरी लड़कियों के साथ होने के दावे कर उसे सताता था। हद तो ये थी कि वो सुरंजना के चाल चलन पर शक करने से भी चूकता नहीं था। न जाने क्यों सुरंजना जैसी सशक्त, आत्मविश्वासी और निडर लड़की उसके आगे ज़ुबान ही नहीं खोल पाती थी। वो शिव से बेहद प्यार करती थी। उसकी खुशी के लिए वो कुछ भी कर सकती थी। कई बार वो सोचती कि वो शिव से अपने रिश्ते और अपने काम को अलग अलग रखेगी। पर हाथ आए मौकों को छोड़ देना उसे कहीं से भी उचित नहीं लगता था। पर एक बार काम पूरा होने के बाद उसका कार्यालय कभी समय पर भुगतान नहीं करता था। वहां की कार्यप्रणाली के कारण शिव अक्सर उससे नाराज़ होता था। कभी कभी वो समय पर पैसे न मिलने के कारण कहीं और से इंतज़ाम कर के शिव को पैसे दिया करती थी। पर इस बार रकम बहुत बड़ी थी। एकदम से 5 लाख रुपए का इंतज़ाम कर पाना सुरंजना की लाख कोशिशों के बाद भी संभव नहीं था। वहीं शिव लगातार उस पर भुगतान के लिए दबाव बनाए हुए था। इसी बात को लेकर आज उसने सुरंजना को अंतिम चेतावनी दी, ' या तो कल शाम तक मेरा पूरा पैसा या कल शाम के बाद हमारा रिश्ता खत्म।' शिव के इस रवैये से परेशान सुरंजना रात भर जागती रही। कभी अपने कार्यालय के रवैये को कोसती, कभी पैसे इकट्ठे करने के लिए साधन जुटाने की कोशिश करती, कभी शिव को समझाने का प्रयास करती वो आज हर मोर्चे पर खुद को हारा हुआ महसूस कर रही थी। रात भर रोने से थकी हुई उसकी आंख सुबह लगी ही थी कि फ़ोन की घंटी से नींद टूट गई। शिव ने रोज़ की तरह उसे सुबह फोन किया और बोला 'आज पता चलेगा सुरंजना कि तुम मुझे कितना प्यार करती हो। अगर आज शाम तक मेरे पैसे आ गए तो ठीक वरना मुझे भूल जाना।' कह कर शिव ने फोन काट दिया। बुझे मन और भारी कदमों से सुरंजना अपने दफ्तर की तरफ चली। आज न उसकी आँखों में चमक थी न होठों पर मुस्कान। एक एक पैर मानो मनों भारी हो रहा था। आंखें भर आईं थीं। किसी तरह ऑफिस आकर उसने अपने कमरे में कदम रखा ही था चपरासी ने कहा 'बड़े साहब ने याद किया है।' 'आपने बुलाया सर' सुरंजना ने उनके कमरे में कदम रखते हुए पूछा। 'हां, ये शिव एंटरप्राईजेस का क्या मसला है। क्यों पूरे दफ्तर में हंगामा मचा रखा है तुमने?' सर उन लोगों ने हमारी नए साल की पार्टी का आयोजन किया था। उसी का पेमेंट बकाया है।' 'तो! उसके लिए तुम पूरे दफ्तर में हंगामा करोगी?' नहीं सर आप मुझे गलत समझ रहे हैं। पार्टी ने काम काफी अच्छा किया था। बाज़ार से कम कीमत पर और समय पर सारी व्यवस्था की थी। अब पिछले एक महीने से उनका पेमेंट रुका है। उसी को लेके बात हुई थी। हंगामा तो नहीं हुआ था सर।' अब तुम हमें सिखाओगी! नहीं सर, मेरा ऐसा कोई ईरादा नहीं। आप मुझे गलत समझ रहे हैं। लेकिन जब काम हो चुका है तो भुगतान रोकने का भी कोई मतलब नहीं बनता। सुरंजना ने एक बार फिर स्थिति संभालने की कोशिश की। पर बड़े साहब तो किसी और ही रौ में थे। सुरंजना समझ चुकी थी कि आज उसने कुछ भी कहा तो साहब उस पर ही बरस पड़ेंगे। आज जितना बेबस उसने कभी महसूस नहीं किया था। वो खुद को बेहद हारा हुआ महसूस कर रही थी। साहब के कमरे से निकल कर वो अपने कमरे में आई ही थी कि शिव ने एक बार फिर उसे फोन किया। 'क्या हुआ? आज शाम तक पेमेंट करवा रही हो न' 'नहीं शिव' उसके इतना कहते ही शिव उस पर भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ा। एक बार फिर सुरंजना किसी के इल्ज़ामों की ज़द में थी। उसके पास शिव की बातों का कोई जवाब नहीं था। कुछ देर तक वो चुपचाप सुनती रही फिर बोली 'ठीक है। हमारा रिश्ता खत्म।' शिव ने फोन काट दिया और सुरंजना थके कदमों से घर की ओर चल पड़ी। सुरंजना जैसी न जाने कितनी मॉडर्न सती हैं जो घर और बाहर दोनों ही मोर्चों पर लगातार एक लड़ाई लड़ती हैं। कभी प्यार, कभी परिवार, तो कभी कैरियर  के नाम पर पिसती रहती हैं। सुरंजना सोच रही थी कि कुछ रुपयों की कीमत आज उसके प्रेम और निष्ठा से बड़ी हो गई थी। वहीं उन्हीं रुपयों के लिए उसके कार्यालय ने भी एक लापरवाह सा रवैया अपनाया हुआ था। आज उसका रिश्ता कार्यालय की लाल फीताशाही की भेंट चढ़ गया था। फिर भी रोज़ रोज़ अपमान की आग में जलने से ज्यादा अकेलेपन की आग में एक बार में जल कर राख हो जाना ही शायद एक बेहतर विकल्प था। सुरंजना सोच रही थी एक सती थीं जिन्होंने अपने पति के अपमान के कारण खुद को जला लिया था और एक उसके जैसी मॉडर्न सती है जिसे आज के शिव खुद ही आग में झोंक देते हैं।


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